प्यारी प्रिया

ना जाने वो कौनसी मनहूस घड़ी थी,
जब दरिंदो की नज़र उस पर पड़ी थी !

सजा कर कईं अरमान अपने दिल में वो,
जन सेवा करने को डॉक्टरी भी उसने पढ़ी थी,
ना जाने वो कौनसी मनहूस घड़ी थी,
जब दरिंदो की नज़र उस पर पड़ी थी !

जला कर उस मासूम को खाक कर दिया उन वहशियों ने ,
क्या गुजरी होगी उस माँ पर जब उसने देखा की उसकी बेटी राख का ढेर बन पड़ी थी ,
ना जाने वो कौनसी मनहूस घड़ी थी,
जब दरिंदो की नज़र उस पर पड़ी थी !

अगर इस अन्याय के न्याय का हक़ किसी माँ को मिल जाये,
तो कोई कमीना ऐसा पाप करने की जुर्रत न कर पाए ,
सरकारों को तो बस अपनी ही कुर्सी की पड़ी थी !
ना जाने वो कौनसी मनहूस घड़ी थी,
जब दरिंदो की नज़र उस पर पड़ी थी !



Kavita Tanwani

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